• Dec 03 2022

G20 का T20 संवाद समूह, अहम नीतिगत मसलों के प्रमुख आयामों को साधने का काम करेगा- फिर चाहे वो डिजिटल तकनीक का सार्वजनिक बुनियादी ढांचा और व्यापक अर्थनीति हो, या फिर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्त और टिकाऊ रहन सहन का मुद्दा हो.

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भारत की G20 अध्यक्षता की शुरुआत होने के साथ ही ये कहना इसकी अहमियत को कम करके आंकना होगा कि भारत, उस वक़्त दुनिया के सबसे ताक़तवर बहुपक्षीय समूह की अगुवाई कर रहा होगा, जिसे विश्व इतिहास का सबसे अहम मोड़ कहा जा रहा है. निरपेक्षताएं और निश्चितता जैसे लफ़्ज़ अब पुराने पड़ चुके हैं. विचारधारा, भूगोल और आबादी नई जटिलताएं पैदा कर रहे हैं, और तकनीकी आविष्कार, जलवायु परिवर्तन से निपटने के क़दम और आर्थिक उठा-पटक इन पर असर डाल रहे हैं. हर चीज़ को हथियार बनाकर इस्तेमाल करना अब एक रिवाज बन चुका है और संवाद की जगह मतभेद ने ले ली है. भारत उस वक़्त अध्यक्ष बना है, जब उसके सामने ऐसे ही मंज़र चुनौती बनकर खड़े हैं और यही वो हालात हैं, जब भारत, स्याह तूफ़ानी हालात में दुनिया को राह दिखाने वाली मशाल बन सकता है.

भारत एक ऐसी सभ्यता है, जो बहुलता का जश्न मनाती है. हज़ारों साल पुरानी एक से अधिक रंग-बिरंगी संस्कृतियों के गुलदस्ते ने ही भारत की सभ्यता को उसका ये रूप दिया है. पिछले 75 वर्षों में भारत ने तमाम विरोधाभासों के साथ रहने की गुंजाइश निकालने और मतभेदों के साथ आगे बढ़ने की शानदार क्षमता का प्रदर्शन किया है

भारत एक ऐसी सभ्यता है, जो बहुलता का जश्न मनाती है. हज़ारों साल पुरानी एक से अधिक रंग-बिरंगी संस्कृतियों के गुलदस्ते ने ही भारत की सभ्यता को उसका ये रूप दिया है. पिछले 75 वर्षों में भारत ने तमाम विरोधाभासों के साथ रहने की गुंजाइश निकालने और मतभेदों के साथ आगे बढ़ने की शानदार क्षमता का प्रदर्शन किया है. सोशल मीडिया के मंचों पर आज मतभेदों और विरोधों के शोर के उलट, ‘विविधता में एकता’ की कहावत भारत के लिए एक सामान्य  सा सच है. आज दुनिया को इसी मिसाल की सबसे अधिक ज़रूरत है. अगर बहुपक्षीयवाद को कामयाब होना है, तो G20 देशों को इसे सफल बनाने के लिए और अधिक मेहनत करनी होगी, और आपस में ही नहीं, अन्य पक्षों के साथ संवाद को भी मज़बूत बनाना होगा. ‘भारत का अपना तौर-तरीक़ा’ इसमें मददगार साबित होगा. जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर महीने आने वाले अपने रेडियो कार्यक्रम, ‘मन की बात’ के नवंबर महीने के एपिसोड में कहा था कि, ‘भारत को दुनिया की बेहतरी और कल्याण पर ध्यान केंद्रित करके G20 का नेतृत्व करने के इस अवसर का बख़ूबी इस्तेमाल करना चाहिए.’

Think20 और G20 में सहभागिता के लिए बने टास्क फोर्स संपर्क

थिंक20 (Think20) असल में थिंक टैंकों और विद्वानों का एक समूह है, जो G20 के ‘वैचारिक केंद्र’ का काम करता है. ये एक आधिकारिक संपर्क समूह है, जो शेरपा संवाद में मदद करता है और G20 नेताओं को उनके विचार के लिए सहयोग प्रदान करता है. वैश्विक आर्थिक उथल-पुथल के इस दौर में मुश्किलों से जूझ रहे देशों और समुदायों की मदद करने के लिए, G20 के एक साझा मूल्यांकन और चुनौती से निपटने की रूपरेखा को परिभाषित करने की ज़रूरत है. ऐसे में उचित ही है कि एक ख़ास तौर से गठित थिंक20 टास्क फ़ोर्स व्यापार और निवेश नीति और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के बीच के संबंध की पड़ताल करेगी और ये पता लगाएगी कि राष्ट्रों की अपनी व्यापक आर्थिक नीतियां इन पर किस तरह से असर डालती हैं. ये टास्क फोर्स, G20 के सदस्यों के बीच आपस में और साथ ही साथ, अन्य देशों की मौद्रिक नीतियों और वित्तीय नीतियों के बीच बेहतर तालमेल बनाने की ज़रूरत पर ध्यान केंद्रित करेगी. ये टास्क फोर्स कुछ देशों द्वारा किए गए इकतरफ़ा फ़ैसलों के कारण, आपूर्ति श्रृंखलाओं और व्यापार को उन पर पड़ने वाले बुरे असर से बचाने के सुझाव देगी. इस तरह, ये टास्क फोर्स रोज़गार और रोज़ी-रोटी सुरक्षित बनाने और उनमें इज़ाफ़ा करने के बारे में भी अपने विचार सामने रखेगी.

ये टास्क फोर्स, G20 के सदस्यों के बीच आपस में और साथ ही साथ, अन्य देशों की मौद्रिक नीतियों और वित्तीय नीतियों के बीच बेहतर तालमेल बनाने की ज़रूरत पर ध्यान केंद्रित करेगी

ये परिचर्चाएं ऐसे माहौल में हो रही हैं, जब दुनिया में चौथी औद्योगिक क्रांति चल रही है और बहुत तेज़ रफ़्तार से डिजिटलीकरण हो रहा है. थिंक20 की एक टास्क फ़ोर्स तो सिर्फ़ डिजिटल सार्वजनिक मूलभूत ढांचे और इसकी अहमियत पर ध्यान केंद्रित करेगी. ये टास्क फोर्स तमाम क्षेत्रों में सस्ते, बराबरी पर आधारित और जवाबदेह डिजिटल विकास की संभालनाएं तलाशेगी और डिजिटल आपूर्ति श्रृंखलाओं को अधिक लचीला और विकेंद्रीकृत बनाने के रास्ते खोजेगी. कई G20 देशों के विशेषज्ञों के इस समूह का मक़सद समावेशी उद्यमिता, नौकरियों और रोज़ी-रोज़गार को बढ़ावा देने के तरीक़ों; सामाजिक संरक्षण; और डिजिटल क्षेत्र में वित्तीय समावेश के बारे में परिचर्चा करना है.

ऐसे किसी भी प्रयास को धरती की बेहतरी के बारे में भी सोचना होगा और एक व्यापक हरित परिवर्तन का हिस्सा बनना होगा. इसमें बदलाव के लिए पूंजी जुटाने में तेज़ी लाने के साथ, इसे समावेशी बनाना होगा और अहम तकनीकों और ऊर्जा के नए विकल्पों के विस्तार में तेज़ी लानी होगी. इसी से जुड़ी एक और टास्क फोर्स बहुपक्षीय विकास बैंकों का मूल्यांकन और उनकी भूमिका के बारे में परिचर्चा करेगी. ये टास्क फोर्स नए वित्तीय माध्यमों और औज़ारों के आकार और उन तौर तरीक़ों पर भी विचार करेगी, ताकि उभरते हुए और विकासशील देशों में निजी क्षेत्र की वैश्विक पूंजी की पूरी क्षमता का इस्तेमाल किया जा सके. ये टास्क फोर्स G20 के काम करने लायक़ निष्कर्षों पर ज़ोर देगी और इन प्रयासों को कामयाब बनाने में मदद भी करेगी.

व्यापक आर्थिक नीतियों, व्यापार और निवेश और हां, हरित परिवर्तन और डिजिटलीकरण, इन सबका एक मुख्य मक़सद होना चाहिए- सभी इंसानों और जीवों की सेवा करना और धरती की रक्षा करना. आज जब G20 की अध्यक्षता इंडोनेशिया से होते हुए भारत को मिल रही है और आगे ब्राज़ील और उससे दक्षिण अफ्रीका को मिलेगी, तो एजेंडा 2030 और टिकाऊ विकास के लक्ष्य (SGDs) हासिल करने के प्रयासों को अब G20 का हिस्सा बन जाना चाहिए. G20 ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों को बचाने में काफ़ी अच्छा काम किया है; अब चुनौती ‘लोगों और धरती की’ सेवा करने की है.

तजुर्बों का आदान-प्रदान

थिंक20 की एक टास्क फोर्स सिर्फ़ इसी पहलू पर अपना ध्यान लगाएगी. दुनिया के तमाम इलाक़ों में संघर्ष और महामारी के चलते स्थायी विकास के लक्ष्यों (SGDs) की अनदेखी की जा रही थी. धरती की बदलती आब-ओ-हवा और मौसम के नखरों ने ये बोझ और बढ़ा दिया है. हम सब समाज के लचीलेपन के बख़ूबी वाक़िफ़ हैं; और स्थायी विकास के लक्ष्य हासिल करने के लिए विज्ञान, आविष्कार और तकनीकी मदद आज भी बेहद अहम माध्यम बने हुए हैं. जल सुरक्षा पर ज़ोर, स्वास्थ्य और पोषण, महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास के मॉडल और प्रगति के निष्कर्षों और जैव विविधता के संरक्षण के मामले में अच्छे नतीजे निकालने के लिए ईमानदार कोशिशों को सहयोग, जैसी बातें इस एक साल के दौरान G20 और T20 के काम का सबसे अहम हिस्सा होंगी.

उभरते हुए भौगोलिक क्षेत्रों की आवाज़ें अब केंद्र में होंगी. इन टास्क फोर्स की अलग अलग थीम और क्षेत्रों के बारे में विचार के लिए 100 से ज़्यादा विशेषज्ञ होंगे

इन सभी मसलों पर क़ाबिल लोगों का समूह विचार करेगा, जो उन G20 देशों की नुमाइंदगी और भागीदारी को बढ़ाएगा, जिन्हें अब तक की परिचर्चाओं में या जगह नहीं मिल पाती थी, या बहुत सीमित स्तर पर मिलती थी. उभरते हुए भौगोलिक क्षेत्रों की आवाज़ें अब केंद्र में होंगी. इन टास्क फोर्स की अलग अलग थीम और क्षेत्रों के बारे में विचार के लिए 100 से ज़्यादा विशेषज्ञ होंगे. यही नहीं, देश के अलग अलग हिस्सों के 40 से ज़्यादा भारतीय संस्थान भी पूरे जोश क़े साथ इन चर्चाओं में भागीदार बनेंगे. इनमें Think20 के पहले के अध्यक्ष देशों के प्रमुख और आगे अध्यक्षता पाने वाले देशों के थिंक टैंक के विशेषज्ञ शामिल होंगे. वरिष्ठ लोगों का ये समूह, भारत की अगुवाई वाली प्रक्रिया में अपने तजुर्बों और महत्वाकांक्षाओं को आपस में साझा करेगा. आख़िर में भारत की अध्यक्षता के दौरान बुद्धिजीवियों का इकट्ठा होना, पिछले साल से तादाद और गुणवत्ता दोनों में अलग होगा. अगले एक साल में उम्मीद यही है कि भारत अपनी क़िस्मत और कोशिशों से बहुत हद तक G20 की शब्दावली बदलकर उसे 2020 के दशक के लिए पूरी तरह तैयार कर चुका होगा.


डॉक्टर समीर सरन, प्रेसिडेंट, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन और Think-20 सचिवालय के प्रमुख,

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ये लेखक के निजी विचार हैं।

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